A Piece That Came Instantly When I Saw A Whole Shabby And Poor Hamlet Simmer To Ashes One Evening On Television News In Bandra Kurla Mumbai On The 4th Of March 2011.....
जलना और जलाना
आग के दमकते शोले
देख के दिल दहल गया
न जाने कितने घर तबाह हुवे
न जाने किस किस की जान गयी
चारों तरफ रात के आसमान पर
लालिमा ही लालिमा है छिटकी हुई
ऐसा लगा के मानो सूर्य फट पड़ा हो
बस्ती है यह गरीबों की
शहर को शरमसार करती हुई
बीच में बसी बेबसी झलकती
आस पास आलिशान अमीरी दागदार होती
फर्क जो था दिखता धन होने या न होने का
हटाओ इस नासूर बने ज़ख़्म को
रास्ता समझ न आये इस के हल का
सभ धनवान मिल के बैठे
सूचने और समझने हल को
बीच में मिलने आये सभी
राजनीति के परिंदे और बलवान
क्या करे कैसे करे अत्यंत यहा बाशिंदे
भागना और हटाना बीच इस शहर से
था बहुत मुश्किल लगता भी था नामुमकिन
जगह अत्यधिक मूल्यवान कीमत न जाये बखानी
आदमी की क्या है कीमत वो पैदा होता हर पल
राख हो भी गया तो फर्क किसको है पड़ता
कुछ रुपये मुआवजे के दे कर इस शोरगुल को
रोकना कोन सा था नामुमकिन
कमी भी नहीं है दमकलो की इस शहर में
आग्नि रक्षक भी हर पल आनंद में है रहते
कभी कभार उनको भी काम मिलता इस बहाने से
इस धधक को भुझाने चले कारवां बनकर
एक दो हिमती हताहत हो गए भी तो क्या है
शोर्य वीरता के पदक भी तो काम आये पड़े जो थे
मर गए तो देश में नाम पायेगे
दमकते इन शोलों को बुझाने थे जो आये